ज़हरीन का प्यासा सफ़र - IV
Chenchala > 11-16-2019, 07:12 AM
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पार्ट 4
जहरीन को तो शराब के नशे और चुदाई की मस्ती में होश ही नहीं था कि जगबीर अंदर आ चुका है। जगबीर सीधे जहरीन के पीछे जाकर खड़ा हो गया और जहरीन के गले को चूमने लगा। जहरीन बिल्कुल चौंक गयी, मगर इस वक्त उसकी हालत ऐसी नहीं थी कि वो कुछ कर पाती। तभी जगबीर ने पीछे से हाथ डालकर उसके मम्मे पकड़ लिये और पीछे से उसकी पीठ को बेतहाशा चूमते हुए उसके मम्मों को दबाने लगा। फिर जहरीन को उसने प्यार से धक्का दिया और वो सीधे विक्रम की छाती से चिपक गयी। उसकी चूत में विक्रम का लण्ड घुसा हुआ था और अब भी विक्रम उसे उछाल रहा था। तभी जगबीर नीचे झुका और जहरीन की गाँड चाटने लगा। जहरीन को जैसे करंट सा लगा, लेकिन एक अजीब सी चमक आ गयी उसकी आँखों में।
जगबीर उसकी गाँड को चाटे जा रहा था। जहरीन की चूत का पानी गाँड तक आ चुका था और जगबीर ने उसकी गाँड में उंगली डालना शुरू कर दिया।
जहरीन तो जैसे एक दम पागल हो गयी। अब वो डबल मज़ा लेने के पूरे मूड में आ गयी थी। यूँ तो विक्रम भी कईं दफा उसकी गाँड मार चुका था, लेकिन गाँड और चूत दोनों में एक साथ लण्ड लेने की बात सोचकर ही उसकी उत्तेजना और परवान चढ़ गयी। अब जगबीर ने अपना मुँह हटाया और अपना लण्ड जहरीन की गाँड पर रख दिया और धीरे-धीरे दबाव बढ़ाने लगा। जहरीन ने विक्रम को रुकने का इशारा किया। वो महसूस करना चाहती थी - जगबीर के लण्ड को अपनी गाँड में घुसते हुए। हर चीज़ का पूरा मज़ा लेती थी वो. आराम से. हर चीज़ का पूरे इत्तमिनान से इस्तेमाल करती थी। बहुत मज़ा आ रहा था उसे, चूत में लण्ड घुसा हुआ था, और गाँड में भी लण्ड घुसने वाला था। जहरीन ने विक्रम को इशारा किया तो विक्रम ने कहा - "जगबीर आराम से धीरे-धीरे डालना, पूरा मज़ा लेकर - पूरे इत्तमिनान से!" जहरीन को चुदाई करवाते वक्त बोलना पसंद नहीं था.. वो सिर्फ़ आँखें बंद करके मज़े लेना चाहती थी! वो भी आराम से! यही वजह थी कि वो काफी देर तक चुदाई करती थी।
अब जगबीर का लण्ड पूरा जहरीन की गाँड में घुस चुका था और उसने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिये। उसके धक्कों के साथ ही जहरीन भी आगे पीछे होने लगी और उसकी चूत में घुसा लण्ड भी अपने आप अंदर बाहर होने लगा। जहरीन जैसे जन्नत में पहुँच गयी थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो एक साथ दो लण्ड खायेगी और उसमें इस कदर इतना शानदार मज़ा आयेगा। विक्रम ने भी नीचे से धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिये। अब जहरीन की गाँड और लण्ड दोनों में लण्ड घुसे हुए थे और वो चुदाई के आसमान पर थी। उसकी आँखें बंद हो गयी और उसकी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गयी। वो अपनी कोहनी का सहारा लेकर झुक गयी और अपनी गाँड धीरे धीरे हिलाने लगी। अब विक्रम और जगबीर ने अपने धक्के तेज़ कर दिये और जहरीन जैसे दो लौड़ों पर बैठी उछल रही थी- सी-सॉ झूले के खेल की तरह कभी पालड़ा यहाँ भारी तो कभी वहाँ भारी। उसे तो ज्यादा हिलने की भी ज़रूरत नहीं थी। अब उसकी आवाज़ें तेज़ होने लगी और उसकी चूत और गाँड में फिर हथौड़े चलने लगे। तभी उसकी चींख सी निकली और उसकी चूत से सैलाब फूट पड़ा और उसकी गाँड में जैसे किसी ने गरम गरम चाशनी भर दी हो। जगबीर भी छूट गया था - और विक्रम भी। जगबीर भी जहरीन के ऊपर ही झुककर निढाल हो गया। उसका लण्ड अब भी जहरीन की गाँड में ही था।
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद जहरीन ने अपने कंधे उचकाये। जगबीर ने अपना लण्ड उसकी गाँड से निकाला और बाथरूम में घुस गया। जहरीन ने विक्रम का लण्ड चाट कर साफ़ किया और उसके पास ही लेट गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे।
"कैसा लगा शब्बो जान?"
"एक पर एक तुम्हें नहीं, मुझे फ्री मिला है!" फिर दोनों हंसने लगे।
"लेकिन, जगबीर भरोसे का आदमी तो है ना?"
"जानू. एक दम पक्का भरोसे का है. और वो सरदार है. तुम बिल्कुल बेफ़िक्र रहो. वो उनमें से नहीं है जो तुम्हें परेशान य बदनाम करेगा!"
"बस मैं यही चाहती हूँ!"
तभी जगबीर बाहर आ गया. जहरीन उठी और अपनी सैंडल खटखटाती हुई बाथरूम में घुस गयी। वो भी शायरा की तरह ही नशे में झूम रही थी और कदम बहक रहे थे।
"यार ये तो उम्मीद से दुगना हो गया!"
"हाँ लेकिन ध्यान रहे किसी को पता ना चले! अच्छे घर की हैं ये दोनों!"
"जानता हूँ यार! किसी को बताकर क्या मुझे अपना ही खाना बिगाड़ना है? और मेरी बीवी को पता चलेगा तो मेरी खुद शामत आ जायेगी! वाहे गुरू की कृपा है. हम क्यों किसी को तकलीफ़ में डालेंगे यार! सब कुछ तो है अपने पास!" बाथरूम में मूतती हुई जहरीन ये सुनकर इत्तमिनान भी हुआ और खुश भी।
"क्या कर रहे हो दोनों? जहरीन कहाँ है? और जगबीर तूने क्या यहाँ भी मज़े कर लिये क्या?" शायरा की आवाज़ थी ये। नशे में झूमती हूई वो उस कमरे में दाखिल हुई। अभी भी उसने सिर्फ सैंडल ही पहने हुए थे और बिल्कुल नंगी ही थी।
"अब आप तो बाथरूम में घुस गयी थीं और बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं तो क्या करता. सोचा आपकी भाभी को डबल मज़ा दे दिया जाये?"
"अब तो आ गयी हूँ मैं. मुझे डबल मज़ा नहीं दोगे क्या?"
जहरीन की दो-तरफ़ा चुदाई चुसाई
जहरीन की गाँड और चूत दोनों की खुजली एक साथ शाँत हो गयी थी। वो अब भी मस्तिया रही थी और उसे लग रहा था जैसे अब भी उसकी चूत में विक्रम का और गाँड में जगबीर का लण्ड घुसा हुआ है और वो चुदाई करवा रही है। उसने झटपट अपनी चूत और गाँड की खबर ली,गाऊन पहना और बाहर आ गयी। ब्रा और फैंटी पहन कर उसे अपना मूड नहीं खराब करना था और फिर चूत और गाँड को भी तो खुला रखना था. आखिर इतनी मेहनत जो की थी दोनों ने!
जब वो बाहर आयी तो ज़मीन पर उसकी ननद शायरा की डबल चुदाई चल रही थी। शायरा जगबीर के ऊपर बैठ कर झुकी हुई अपनी चूत में उसका लण्ड लेकर चुदवा रही थी और उसके पीछे विक्रम उसकी कमर पर झुका हुआ उसकी गाँड में दनादन अपना लण्ड अंदर-बाहर चोद रहा था। कमरे में शायरा की सिसकरियाँ और आहें गूँज रही थीं।
बाद में चारों फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में फिर से बैठ कर व्हिस्की के पैग पीने लगे!
तभी एक तसवीर देख कर जगबीर ने कहा, "तो इन हज़रत की बीवी हैं आप?"
"जी हाँ! यही युसूफ हैं! क्या आप जानते हैं इन्हें?"
"नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया, क्या वो शहर से बाहर गये हैं?"
"हाँ, कल शाम को आ जायेंगे!"
शराब का ग्लास रखते हुए जगबीर ने अपने कपड़े पहनते हुए कहा, "ठीक है तो हम चलते हैं, फिर मिलेंगे. अगर आपने याद किया तो!"
"अरे इतनी जल्दी क्या है. रात का एक ही बज रहा है!" शायरा ने कहा, "युसूफ तो कल शाम को आयेगा. सुबह यहीं से नहा धोकर चले जाना. तब तक एक और राऊँड हो जाये चुदाई का.!"
"अरे मोहतर्मा! जिनकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, वो जितनी जल्दी हो घर पहुँचना चाहेगा!" कहकर हँस दिया जगबीर।
"अच्छा तो वो क्या ऐसे ही काम छोड़ कर आ जायेगा. शहर से बाहर ही नहीं जायेगा?" जहरीन ने बीच में चुटकी ली। शराब का नशा बरकरार था उसपर।
"अरे भाई, वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा कि शहर में ही है. हो सकता है युसूफ सुबह छः बजे आ जाये, रिस्क क्यों लेना?"
"चलो ठीक है! वैसे भी सुबह जल्दी ऑफिस जाना है!" विक्रम ने सोफ़े पर से उठते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा।
जहरीन और शायरा ने भी ज़्यादा ज़िद्द नहीं की। विक्रम और जगबीर दोनों निकाल गये।
जहरीन और शायरा ने अपने बिस्तर ठीक किये और दोनों एक दम तस्कीन से खुश होकर सो गयी।
सुबह छः बजे घंटी बजने पर जहरीन ने दरवाज़ा खोला दूध लेने के लिये। "युसूफ तुम? इतनी जल्दी? तुम तो शाम को आने वाले थे ना?" एक दम चौंक गयी थी जहरीन।
"क्यों मेरा जल्दी आना अच्छा नहीं लगा तुम्हें?"
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं, यूँ ही पूछ लिया!"
जहरीन ने चैन की साँस ली। वो आज मरते-मरते बची थी। अगर जगबीर ने जाने के लिये ज़ोर नहीं दिया होता तो विक्रम भी वहीं होता और आज उसकी शामत ही आने वाली थी। ये सोचकर उसका दिमाग एक दम घूम गया। उसके कानों में जगबीर के अल्फाज़ गूँजने लगे "हो सकता है सुबह छः बजे ही आ जायें।" उसका दिमाग चक्कर घिन्नी की तरह घूम गया। उसे शक होने लगा कि जगबीर को पहले ही पता था कि युसूफ सुबह आने वाला है।
सुबह छः बजे आने के बावजूद युसूफ नौ बजे ही घर से फिर निकल गया।